एक समय की बात है, एक राजा था जिसे सर्व निंदक महाराज के नाम से जाना जाता था। इस राजा का कोई खास काम नहीं था, बस उसे दूसरों की निंदा करने में आनंद आता था। वह हर समय औरों के काम में टाँग अड़ाता और आलोचना करता रहता था।
अगर कोई व्यक्ति मेहनत करके आराम करता तो वह कहता, “यह मूर्ख कामचोर है।” और अगर कोई काम करता हुआ दिखता तो कहता, “यह पूरी जिंदगी काम करते हुए मर जाएगा।” अगर कोई पूजा करता तो वह इसे “देह चुराने” जैसा बताता, और अगर कोई पूजा नहीं करता तो कहता, “यह नास्तिक है, मरने के बाद यह नर्क में जाएगा।”
निंदा के ऐसे बड़े माहिर बन चुके इस महाराज ने किसी को भी नहीं छोड़ा, यहाँ तक कि भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी को भी अपनी आलोचनाओं से नहीं बचने दिया। नारद जी ने इस राजा की निंदा का हाल भगवान श्री विष्णु को बताया। भगवान विष्णु ने कहा, “उन्हें विष्णु लोक में भोजन पर आमंत्रित करें।”
नारद जी बिना कोई जोखिम लिए राजा के पास पहुंचे और भगवान विष्णु के निमंत्रण से उन्हें विष्णु लोक ले आए। वहां लक्ष्मी जी ने अपनी रचनात्मकता से कई प्रकार के व्यंजन तैयार किए और उन्हें महाराज के सामने परोस दिया। महाराज ने प्रसन्न होकर भोजन किया और भगवान विष्णु से पूछा, “महाराज, भोजन कैसा लगा?”
सर्व निंदक महाराज ने कहा, “भोजन तो स्वादिष्ट था, लेकिन इतना अच्छा नहीं होना चाहिए कि आदमी खाते-खाते अपनी जान ही दे दे!” भगवान विष्णु इस बात पर मुस्कराए और कहा, “आपकी निंदा के प्रति प्रतिबद्धता देखकर मैं प्रसन्न हूं। आप तो लक्ष्मी जी तक को नहीं छोड़ते, अब मुझे आपसे एक वरदान मांगने का अवसर दूं।”
महाराज ने थोड़ा संकोच करते हुए कहा, “हे प्रभु, मेरे वंश में वृद्धि होनी चाहिए।” भगवान विष्णु ने कहा, “तथास्तु!”
तब से यह प्रजाति ऐसी निंदक लोगों की कहीं भी मिलती है, जो कभी संतुष्ट नहीं होते।
सीख:
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि चाहे हम कितना भी अच्छा काम क्यों न करें, निंदा करने वाले लोग कभी संतुष्ट नहीं होते। ऐसे लोगों की परवाह किए बिना हमें अपने मार्ग पर चलते रहना चाहिए और सकारात्मकता के साथ जीवन जीना चाहिए। अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें और नकारात्मकता को नजरअंदाज करें।