रामायण भारतीय संस्कृति और धर्म की नींव मानी जाती है। इसमें ऐसी कई कहानियां हैं, जो हमारे जीवन को प्रेरणा देने के साथ-साथ हमें चमत्कृत भी करती हैं। एक ऐसी ही अद्भुत और प्रेरणादायक कथा है जिसमें रावण ने स्वयं श्रीराम की विजय के लिए यज्ञ करवाया।
रावण ने स्वीकार किया निमंत्रण
कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम और उनकी वानर सेना सीता माता की खोज करते-करते लंका पहुंचे, तब उन्होंने महादेव की कृपा पाने के लिए यज्ञ का आयोजन करने का निश्चय किया। इस यज्ञ को सफल बनाने के लिए एक प्रकांड विद्वान पंडित की आवश्यकता थी। श्रीराम ने समझा कि रावण से बड़ा कोई विद्वान नहीं है, इसलिए उन्होंने रावण को यज्ञ करवाने का निमंत्रण भेजा।
रावण, जो कि भगवान शिव का परम भक्त था, उसने यह निमंत्रण सहर्ष स्वीकार किया। यह दिखाता है कि उसकी भक्ति और विद्वता किसी भी प्रकार की शत्रुता से ऊपर थी।
सफलतापूर्वक कराया यज्ञ
रावण यज्ञ करने जब आया, तो भगवान श्रीराम और उनकी वानर सेना ने उसे पूरे आदर के साथ संबोधित किया। बिना किसी संकोच के रावण ने यज्ञ सफलतापूर्वक संपन्न करवाया। यज्ञ के बाद भगवान श्रीराम ने रावण से विजय का आशीर्वाद मांगा।
रावण ने राम जी को तथास्तु कहकर विजय का आशीर्वाद दिया। इसके बाद राम जी ने युद्ध में विजय प्राप्त की, और अंततः रावण को अपने कर्मों के कारण मृत्यु का सामना करना पड़ा।
कथा का संदेश
यह कथा रावण की शिव भक्ति और विद्वता को दर्शाती है। साथ ही, यह भगवान श्रीराम के उच्च आदर्शों को भी उजागर करती है। उन्होंने रावण को एक दुश्मन के रूप में नहीं, बल्कि एक विद्वान पंडित के रूप में देखा और उसे पूरा सम्मान दिया। यह हमें सिखाता है कि सच्चे धर्म और विद्या के प्रति सम्मान हर शत्रुता से ऊपर होता है।
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