आँखें बंद, हाथ जुड़े हुए, और आप पूरी श्रद्धा से भगवान के नाम का जाप कर रहे हैं… और तभी अचानक मन में कोई बिल्कुल ही अप्रासंगिक और गंदा विचार आ जाता है। ऐसा होते ही आपका ध्यान भंग हो जाता है, मन में अपराध बोध (Guilt) और ग्लानि भर जाती है। आपको लगता है कि शायद आपकी भक्ति में ही कोई कमी है या आप एक अच्छे भक्त नहीं हैं।
यकीन मानिए, आप अकेले नहीं हैं। पूजा करते समय गंदे विचार आना एक बहुत ही सामान्य अनुभव है, खासकर उन लोगों के लिए जो भक्ति के मार्ग पर नए हैं या अपने मन को साधने का प्रयास कर रहे हैं। यह कोई पाप नहीं, बल्कि एक संकेत है कि आपकी आंतरिक सफाई की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
तो सवाल यह है कि ऐसा होता क्यों है? और जब ऐसे अशुद्ध विचार आएं, तो हमें क्या करना चाहिए? चलिए, इस विषय को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि पूज्य प्रेमानंद जी महाराज जैसे संत इस बारे में क्या मार्गदर्शन देते हैं।
भक्ति के दौरान मन में बुरे विचार क्यों आते हैं? (The Real Reason)
यह समझना ज़रूरी है कि ये विचार आते कहाँ से हैं। ये कोई बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि हमारे ही मन की गहराइयों में छिपी हुई चीज़ें हैं जो भक्ति की ऊर्जा से सतह पर आ जाती हैं। इसके कुछ मुख्य कारण हैं:
1. मन का चंचल स्वभाव:
श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा है कि मन बहुत चंचल, हठी और बलवान है, इसे वश में करना वायु को रोकने के समान कठिन है। मन का स्वभाव ही है भटकना। जब आप उसे एक जगह (भगवान के नाम पर) टिकाने की कोशिश करते हैं, तो वह अपनी पूरी ताकत से इधर-उधर भागता है और पुराने संस्कारों को आपके सामने ले आता है।
2. दबे हुए संस्कार और वासनाएं:
सोचिए, एक कमरा सालों से बंद है और उसमें धूल-मिट्टी जमी हुई है। जब आप उस कमरे की सफाई करने के लिए झाड़ू लगाते हैं, तो क्या होता है? सारी धूल हवा में उड़ने लगती है और कमरा पहले से भी ज्यादा गंदा दिखने लगता है। ठीक इसी तरह, हमारा मन भी एक कमरा है, जिसमें जन्मों-जन्मों के संस्कार, इच्छाएं और वासनाएं (गंदे विचार) धूल की तरह जमे हुए हैं। जब आप भक्ति या नाम-जप की झाड़ू लगाते हैं, तो ये दबी हुई अशुद्धियाँ सतह पर आकर उड़ने लगती हैं। इसका मतलब यह नहीं कि आप गंदे हो रहे हैं, बल्कि यह है कि आपकी सफाई हो रही है।
3. पिछले कर्मों का प्रभाव:
हमारे पुराने कर्म एक बीज की तरह होते हैं, जो सही समय आने पर फल देते हैं। भक्ति एक ऐसी अग्नि है जो इन कर्म-बीजों को भून देती है ताकि वे दोबारा अंकुरित न हो सकें। जब ये कर्म-बीज जलते हैं, तो उनका धुआँ विचारों के रूप में मन में उठता है।
4. एक तरह की परीक्षा:
कभी-कभी यह भक्ति के मार्ग पर आपकी दृढ़ता की परीक्षा भी होती है। क्या आप इन विचारों से घबराकर भक्ति का मार्ग छोड़ देंगे, या और मजबूती से भगवान का नाम पकड़ेंगे?
जब पूजा में गंदे विचार आएं, तो तुरंत क्या करें?
प्रेमानंद जी महाराज बहुत ही सरल और सटीक उपाय बताते हैं। उनका कहना है कि जब भी पूजा करते समय गंदे विचार आएं, तो घबराना या नाम-जप छोड़ना नहीं है, बल्कि नाम को और ज़ोर से, और कसकर पकड़ लेना है।
इसे एक उदाहरण से समझें:
जैसे कोई माँ अपने बच्चे को कीचड़ में गिरने से बचाने के लिए उसे और ज़ोर से पकड़ लेती है, ठीक वैसे ही जब आपका मन विचारों के कीचड़ में फंसे, तो आप ‘राधे-श्याम’ या अपने इष्टदेव के नाम को और ज़ोर से पकड़ लीजिए।
संघर्ष न करें, साक्षी बनें:
सबसे बड़ी गलती जो हम करते हैं, वह है उन विचारों से लड़ना। आप जितना किसी विचार को दबाने की कोशिश करेंगे, वह उतनी ही ताकत से वापस आएगा। इसका सही तरीका है ‘साक्षी भाव’। आप बस अपने विचारों को देखें, जैसे आप आसमान में बादलों को आते-जाते देखते हैं। आप बादल नहीं हैं, आप तो आसमान हैं। विचार आएंगे और चले जाएंगे, आपको उनसे जुड़ना नहीं है, उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है। बस अपना ध्यान वापस नाम-जप पर ले आएं।
इन विचारों को जड़ से खत्म करने के स्थायी उपाय
तत्काल समाधान के साथ-साथ कुछ ऐसी आदतें हैं जिन्हें अपनाकर आप धीरे-धीरे इन विचारों को जड़ से कम कर सकते हैं:
सात्विक आहार: “जैसा अन्न, वैसा मन।” तामसिक भोजन (जैसे- मांस, मदिरा, बासी भोजन) मन में उत्तेजना और बुरे विचारों को जन्म देता है। सात्विक भोजन मन को शांत और शुद्ध रखता है।
अच्छी संगति (सत्संग): आप जैसे लोगों के साथ रहते हैं, आपके विचार भी वैसे ही हो जाते हैं। आध्यात्मिक और सकारात्मक लोगों की संगति में रहें। संतों के वचन सुनें, अच्छी किताबें पढ़ें।
क्षमा का अभ्यास: सबसे पहले खुद को इन विचारों के लिए क्षमा करें। अपराध-बोध आपको और नीचे गिराएगा। समझें कि यह एक प्रक्रिया का हिस्सा है और आप इससे बाहर निकल जाएंगे।
भाव पर ध्यान दें, गिनती पर नहीं: आप कितनी माला जप रहे हैं, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप कितने भाव से जप रहे हैं। जब आपकी भावना शुद्ध होगी, तो विचार अपने आप शांत होने लगेंगे।
मन की सफाई का काम ‘नाम’ पर छोड़ दें
अंत में, प्रेमानंद जी महाराज की सबसे महत्वपूर्ण बात याद रखें: “मन साफ करने का काम ‘नाम’ का है। अगर मन पहले से ही साफ होता, तो नाम की क्या ज़रूरत थी?”
जैसे गंदे कपड़े को साफ करने के लिए साबुन और पानी की ज़रूरत होती है, वैसे ही गंदे मन को साफ करने के लिए भगवान के नाम रूपी साबुन की ज़रूरत है। पूजा करते समय गंदे विचार आना इस बात का प्रमाण है कि नाम-जप का साबुन अपना काम कर रहा है और मैल को बाहर निकाल रहा है।
इसलिए, निराश न हों। धैर्य और विश्वास के साथ निरंतर अभ्यास करते रहें। धीरे-धीरे आप पाएंगे कि ये विचार कम होने लगे हैं और आपका मन भगवान के चरणों में स्थिर होने लगा है।
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