कभी सोचा है कि क्यों आज भी भारत के कई घरों में, महंगे सोफे और कुर्सियों के होते हुए भी, लोग पूजा, भोजन या बस बातचीत के लिए भी ज़मीन पर बैठना पसंद करते हैं? यह सिर्फ एक पुरानी आदत नहीं, बल्कि इसके पीछे एक गहरा विज्ञान और अध्यात्म छिपा है। हमारे पूर्वज जानते थे कि जमीन पर बैठने के फायदे सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और ऊर्जात्मक भी हैं।
जब हम कहते हैं “ज़मीन से जुड़कर रहो,” तो इसका मतलब सिर्फ विनम्र होना नहीं है। इसका शाब्दिक अर्थ है – पृथ्वी के सीधे संपर्क में आना। योग की दुनिया में, ज़मीन पर बैठना एक साधारण क्रिया नहीं, बल्कि चेतना को स्थिर करने और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का पहला कदम माना जाता है।
तो चलिए, आज हम इस प्राचीन भारतीय परंपरा के पीछे छिपे रहस्यों को उजागर करते हैं और जानते हैं कि क्यों योग से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, हर कोई ज़मीन पर बैठने को इतना महत्वपूर्ण मानता है।
जड़ें मज़बूत तो पेड़ मज़बूत: स्थिरता और विनम्रता का संगम
एक ऊँचे पेड़ को देखिए। उसकी मजबूती उसकी ऊँचाई में नहीं, बल्कि उसकी गहरी जड़ों में होती है जो ज़मीन को कसकर पकड़े रहती हैं। ठीक इसी तरह, जब हम ज़मीन पर बैठते हैं, तो हम शारीरिक और मानसिक रूप से अपनी जड़ों को मज़बूत करते हैं।
शारीरिक स्थिरता: कुर्सी पर बैठने की तुलना में ज़मीन पर बैठने के लिए शरीर को अधिक संतुलन और कोर स्ट्रेंथ की ज़रूरत होती है। यह हमारे पोस्चर को स्वाभाविक रूप से सुधारता है और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखता है।
मानसिक विनम्रता: ज़मीन पर बैठने की क्रिया अहंकार को कम करती है। यह हमें याद दिलाती है कि हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं, हमारा आधार यही पृथ्वी है। यह भाव मन को शांत करता है और ध्यान व प्राणायाम के लिए एक आदर्श स्थिति बनाता है।
ऊर्जा का आधार: मूलाधार चक्र का जागरण
योग के अनुसार, हमारे शरीर में सात ऊर्जा केंद्र (चक्र) होते हैं। इनमें सबसे पहला और foundational चक्र है मूलाधार चक्र (Root Chakra), जो हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में स्थित होता है। यह चक्र सुरक्षा, स्थिरता और जीवन में अपने अस्तित्व की भावना से जुड़ा है।
जब हम सीधे ज़मीन पर बैठते हैं, खासकर सुखासन या पद्मासन में, तो हमारा मूलाधार चक्र पृथ्वी के सीधे संपर्क में आता है। पृथ्वी तत्व की ऊर्जा इस चक्र को सक्रिय और संतुलित करती है। इससे हमें मानसिक सुरक्षा, आत्मविश्वास और जीवन में ठहराव का अनुभव होता है। जिन लोगों को अक्सर बेचैनी या असुरक्षा महसूस होती है, उनके लिए ज़मीन पर बैठना एक शक्तिशाली थेरेपी की तरह काम कर सकता है।
वैज्ञानिक भाषा में ‘ग्राउंडिंग’: तनाव की ऐसे होती है छुट्टी
आपने “अर्थिंग” (Earthing) या “ग्राउंडिंग” (Grounding) शब्द सुना होगा? जैसे किसी बिजली के उपकरण से अतिरिक्त करंट को ज़मीन में भेजने के लिए अर्थिंग का तार लगाया जाता है, ताकि उपकरण सुरक्षित रहे, ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी काम करता है।
दिन भर के तनाव, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के इस्तेमाल और भागदौड़ से हमारे शरीर में एक तरह की स्थैतिक विद्युत ऊर्जा (Static Electric Energy) और फ्री रेडिकल्स जमा हो जाते हैं। यह ऊर्जा हमें बेचैन, चिड़चिड़ा और थका हुआ महसूस कराती है।
जब हम नंगे बदन (या कम से कम कपड़ों में) ज़मीन, घास या मिट्टी के संपर्क में आते हैं, तो पृथ्वी की प्राकृतिक विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा इस नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेती है और हमारे शरीर को न्यूट्रल कर देती है। इसी प्रक्रिया को ग्राउंडिंग कहते हैं। इसके फायदे अद्भुत हैं:
मानसिक तनाव और चिंता कम होती है।
नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
शरीर में सूजन (inflammation) कम होती है।
मन में चल रहे फालतू विचार शांत होते हैं।
बेहतर पाचन और लचीला शरीर: एक बोनस
जमीन पर बैठने के फायदे सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं, शारीरिक भी हैं।
पाचन में सुधार: जब हम सुखासन या पद्मासन में बैठकर भोजन करते हैं, तो हम खाने के लिए थोड़ा आगे झुकते हैं और फिर वापस सीधे होते हैं। यह आगे-पीछे की गति पेट की मांसपेशियों को सक्रिय करती है, जिससे पाचन रस बेहतर तरीके से निकलते हैं और भोजन आसानी से पचता है। यही कारण है कि वज्रासन को भोजन के बाद करने की सलाह दी जाती है।
शरीर का लचीलापन: लगातार कुर्सी पर बैठने से हमारे कूल्हे और घुटने अकड़ जाते हैं। ज़मीन पर बैठने से कूल्हों, घुटनों और टखनों के जोड़ों में प्राकृतिक रूप से खिंचाव आता है, जिससे उनका लचीलापन बना रहता है और वे लंबे समय तक स्वस्थ रहते हैं।
ज़मीन पर बैठने के कुछ प्रमुख योगासन
योग में ज़मीन पर बैठने को ही साधना का आधार माना गया है। कुछ प्रमुख आसन हैं:
सुखासन (Easy Pose): यह ध्यान और सामान्य बैठने के लिए सबसे सरल और आरामदायक आसन है।
पद्मासन (Lotus Pose): यह आसन गहरी ध्यान अवस्था के लिए आदर्श है, क्योंकि यह ऊर्जा को शरीर के भीतर लॉक करके ऊपर की ओर उठाता है।
वज्रासन (Thunderbolt Pose): एकमात्र आसन जिसे भोजन के तुरंत बाद करने की सलाह दी जाती है, यह पाचन तंत्र को मज़बूत करता है।
सिद्धासन (Adept’s Pose): यह आसन ऊर्जा के आंतरिक प्रवाह को साधने और कुंडलिनी जागरण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
तो अगली बार जब आप घर पर हों, तो कुछ देर के लिए सोफे को छोड़कर ज़मीन पर बैठने का प्रयास करें। यह सिर्फ एक शारीरिक मुद्रा का बदलाव नहीं, बल्कि अपनी जड़ों की ओर लौटने का एक प्रयास होगा। यह आपको याद दिलाएगा कि सच्ची शांति और स्थिरता किसी बाहरी वस्तु में नहीं, बल्कि स्वयं के भीतर और इस धरती माँ के जुड़ाव में ही निहित है।
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