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हनुमान की अनमोल भक्ति और सिंदूर से जुड़ी यह प्रेरक कथा

Bhakti Dhaara: Exploring Hindu Dharma's essence Bhakti Dhaara: Exploring Hindu Dharma's essence

महायुद्ध समाप्त हो चुका था। त्रेता युग के सबसे बड़े खलनायक रावण और उसका समस्त कुल नष्ट हो चुका था। प्रभु श्रीराम ने जगत को त्रास से मुक्त किया और शांति की स्थापना की। अयोध्या लौटने के बाद प्रभु श्रीराम का भव्य राज्याभिषेक हुआ।

राजा राम ने सभी वानर और राक्षस मित्रों को ससम्मान विदा किया। इस विदाई के क्षणों में कई भावुक पल देखने को मिले। अंगद को विदा करते समय श्रीराम की आंखें भर आईं, और हनुमान जी को तो विदा करने की शक्ति स्वयं राम में भी नहीं थी। माता सीता ने हनुमान को पुत्रवत स्नेह दिया। यही कारण था कि हनुमान अयोध्या में ही रुक गए।

हनुमान की उपस्थिति और परिवार की असहजता

समय बीता। एक दिन श्रीराम ने अपने परिवार के साथ पहली बार वनवास, युद्ध और औपचारिकताओं के बाद एक निजी समय बिताने का अवसर पाया। उनके निजी कक्ष में उनके सभी अनुज अपनी पत्नियों के साथ उपस्थित थे। यह एक सुखद पारिवारिक क्षण था।

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हालांकि, इस कक्ष में हनुमान जी की उपस्थिति ने कुछ वधुओं को असहज कर दिया। उन्होंने संकेतों में शत्रुघ्न को यह बात समझाई। शत्रुघ्न ने हनुमान से कक्ष छोड़ने का अनुरोध किया। लेकिन हनुमान, अपनी स्वाभाविक भक्ति और निष्ठा के कारण, यह मामूली संकेत समझ नहीं सके।

जब अंततः राम ने मुस्कुराते हुए हनुमान से कहा, “वीर, अब तुम जाओ और विश्राम करो,” तो हनुमान ने उत्तर दिया, “प्रभु, जब आप सामने हों तो इससे बड़ा विश्राम और क्या हो सकता है?”

शत्रुघ्न ने थोड़े तीखे स्वर में कहा, “हनुमान जी, भैया और भाभी को एकांत चाहिए। कृपया उन्हें यह समय दें।”

हनुमान ने उत्सुकता से पूछा, “प्रभु, क्या माता सीता के साथ रहने का कोई विशेष कारण है?”

इस पर शत्रुघ्न ने उत्तर दिया, “माता सीता के माथे का सिंदूर ही उनके साथ रहने का अधिकार देता है।”

हनुमान के मन में यह बात गहराई तक बैठ गई। उन्होंने तुरंत श्रीराम से पूछा, “प्रभु, क्या यह सच है कि सिंदूर लगाने से आपके साथ रहने का अधिकार मिल जाता है?”

श्रीराम मुस्कुराए और बोले, “हाँ हनुमान, यह सनातन परंपरा है।”

हनुमान का अनूठा कदम

इस वार्तालाप के बाद, हनुमान जी ने रातभर एक अद्भुत कार्य किया। उन्होंने पूरे अयोध्या से सिंदूर एकत्रित किया और अपने पूरे शरीर पर लगा लिया। अगली सुबह दरबार में हनुमान जी के इस रूप ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

हनुमान जी सिर से पैर तक सिंदूर में रंगे हुए थे। उनकी हर चाल के साथ सिंदूर नीचे गिरता जा रहा था, और सभा में बैठे लोग यह देखकर हंसने लगे।

श्रीराम ने मुस्कुराते हुए पूछा, “हनुमान, यह क्या है?”

हनुमान ने बड़े उल्लास से उत्तर दिया, “प्रभु, मुझे कल पता चला कि सिंदूर लगाने से आपके निकट रहने का अधिकार मिलता है। इसलिए मैंने पूरी अयोध्या का सिंदूर अपने ऊपर लगा लिया। अब तो कोई मुझे आपसे दूर नहीं कर पाएगा!”

सभा में सभी हंस रहे थे, लेकिन भरत की आंखों से अश्रु बहने लगे।

भरत का भावुक संदेश

जब शत्रुघ्न ने भरत से पूछा, “भैया, आप रो क्यों रहे हैं?” तो भरत ने उत्तर दिया, “अनुज, क्या तुम देख नहीं रहे? यह वानरों का महान नेता, विद्वान, वीर और सिद्ध पुरुष हनुमान अपने सारे ज्ञान और गर्व को भुलाकर प्रभु राम की भक्ति में लीन है। यह भक्ति का ऐसा स्वरूप है, जो संसार में दुर्लभ है।”

भरत ने आगे कहा, “हनुमान जैसे भक्त को संसार कभी नहीं भूल पाएगा। उनकी भक्ति और समर्पण अमर है।”

भक्ति की शिक्षा

हनुमान जी की यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में समर्पण और प्रेम सबसे महत्वपूर्ण हैं। हनुमान जी की तरह यदि हम भी अपने आराध्य के प्रति समर्पित हों, तो जीवन में हर कठिनाई छोटी लगने लगती है।


हनुमान जी की भक्ति और उनका सिंदूर से भरा हुआ शरीर केवल उनकी मासूमियत नहीं, बल्कि उनकी परम निष्ठा और प्रेम का प्रतीक है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति में सच्चा आनंद समर्पण में ही है।


इस तरह की और जानकारियों के लिए “भक्ति धारा” को फॉलो करें।

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