हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत विशेष महत्व रखता है। प्रत्येक महीने में दो एकादशी होती हैं, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। इस दिन व्रत करने से भक्तों को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है, और पापों का नाश होता है। विशेष रूप से देव उठानी एकादशी का व्रत अत्यधिक महत्व रखता है, जिसे कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन मनाया जाता है।
यह एकादशी पद्मपुराण में वर्णित है, जिसमें भगवान श्री विष्णु के देवोत्थान का उल्लेख किया गया है। इस दिन व्रत रखने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। व्रति द्वारा की गई सभी धार्मिक क्रियाएँ जैसे स्नान, तप, दान, और जप, अक्षय फल देने वाली मानी जाती हैं।
देव उठानी एकादशी व्रत कथा:
धर्मराज युधिष्ठिर ने एक दिन भगवान श्री कृष्ण से पूछा, “हे भगवान! मैंने कार्तिक कृष्ण एकादशी का व्रत सुना है, कृपया मुझे इस दिन के महत्व और व्रत की विधि के बारे में बताएं।”
भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दिया, “कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली यह एकादशी विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन व्रत रखने से बड़े-बड़े पापों का नाश होता है और भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है।”
भगवान ने एक राजा की कहानी सुनाई, जो अपनी प्रजा से लेकर अपने पशुओं तक सभी को एकादशी के दिन अन्न नहीं देता था। एक दिन एक व्यक्ति राजा से नौकरी की प्रार्थना करता है, और राजा उसे एक शर्त के साथ नौकरी देता है – “तुमें एकादशी के दिन अन्न नहीं मिलेगा।”
वह व्यक्ति पहले तो राजी हो जाता है, लेकिन जब उसे फलाहार दिया जाता है तो वह राजा के पास जाकर कहता है, “महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा, मुझे अन्न दीजिए।” राजा ने शर्त याद दिलाई, लेकिन व्यक्ति अन्न के बदले राजा से आटा, दाल और चावल मांगता है।
वह व्यक्ति यह बताते हुए घर जाता है कि भगवान के साथ वह भोजन करता है, इसलिए उसे और अधिक खाद्य सामग्री की आवश्यकता है। राजा को विश्वास नहीं होता, लेकिन जब वह व्यक्ति नदी के किनारे भगवान को बुलाता है, तब भगवान श्री कृष्ण उनके साथ भोजन करने के लिए प्रकट होते हैं और अंत में उसे अपने धाम ले जाते हैं।
राजा ने सोचा कि व्रत और उपवास का कोई भी लाभ तब तक नहीं होता जब तक मन की पवित्रता न हो। यही ज्ञान प्राप्त कर राजा ने भी शुद्ध मन से व्रत करना शुरू किया और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति की।
निष्कर्ष:
देव उठानी एकादशी का व्रत न केवल शारीरिक पवित्रता को बढ़ाता है, बल्कि यह मानसिक शुद्धता और आस्था का भी प्रतीक है। इस दिन व्रत करने से भक्तों को परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका जीवन सफल होता है।
आप भी इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करें और इसके पुण्य का लाभ प्राप्त करें।