प्राचीन समय में, जब धरती पर देवता और असुर विचरण करते थे, तब भस्मासुर नामक एक शक्तिशाली असुर हुआ करता था। वह असीम शक्ति प्राप्त करना चाहता था ताकि संसार पर अपना आधिपत्य जमा सके।
उसकी महत्वाकांक्षा उसे भगवान शिव की घोर तपस्या करने के लिए प्रेरित करती है। कई वर्षों तक, वह कठिन साधना में लीन रहता है, अन्न-जल का त्याग कर कठोर तपस्या करता है। उसकी भक्ति और तपस्या इतनी प्रबल थी कि स्वर्गलोक तक उसका प्रभाव पहुँचने लगा।
🔹 शिव जी का वरदान और भस्मासुर का अहंकार
अंततः भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं और उससे वरदान मांगने के लिए कहते हैं।
भस्मासुर चतुराई से कहता है,
“हे महादेव! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं जिस किसी के भी सिर पर हाथ रखूं, वह तुरंत भस्म हो जाए।”
शिवजी अपने भक्तों को दिए गए वचनों से बंधे होते हैं, इसलिए वे उसे यह विनाशकारी वरदान दे देते हैं। लेकिन जैसे ही उसे यह शक्ति प्राप्त होती है, उसका अहंकार सातवें आसमान पर पहुँच जाता है।
🔹 जब भस्मासुर ने महादेव को ही मारने की सोची!
नए वरदान की शक्ति को आज़माने के लिए, भस्मासुर आसपास की वस्तुओं को भस्म करने लगता है। लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा यहीं नहीं रुकती। उसे लगता है कि यदि वह स्वयं भगवान शिव को ही भस्म कर दे, तो वह सबसे शक्तिशाली बन जाएगा।
यह सोचकर वह भगवान शिव की ओर बढ़ता है और उनके सिर पर हाथ रखने का प्रयास करता है।
शिवजी तुरंत स्थिति को भाँपकर वहाँ से भाग निकलते हैं। महादेव पर्वतों, जंगलों और नदियों को पार करते हुए भागते रहे, लेकिन भस्मासुर उनके पीछे-पीछे दौड़ता रहा।
🔹 भगवान विष्णु का मोहिनी रूप में अवतार
भगवान शिव संकट में थे, और इसे देखते हुए भगवान विष्णु ने महादेव को बचाने के लिए एक दिव्य योजना बनाई।
उन्होंने “मोहिनी” का रूप धारण किया। मोहिनी अनुपम सुंदरता वाली देवी थीं, जिनका आकर्षण इतना अद्भुत था कि जो कोई भी उन्हें देखता, वह उनके सम्मोहन में खो जाता।
जब भस्मासुर ने मोहिनी को देखा, तो वह भी उनके सौंदर्य पर मोहित हो गया और महादेव को भूलकर मोहिनी की ओर आकर्षित हो गया।
🔹 मोहिनी और भस्मासुर का नृत्य
मोहिनी ने भस्मासुर की चतुराई से परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,
“हे वीर! तुम इतने शक्तिशाली हो, पर क्या तुम मेरे साथ नृत्य कर सकते हो?”
भस्मासुर को यह चुनौती स्वीकार थी। वह तुरंत नृत्य करने के लिए तैयार हो गया।
मोहिनी ने अपनी मोहक अदाओं से एक मनमोहक नृत्य आरंभ किया। भस्मासुर मंत्रमुग्ध होकर हर एक स्टेप को दोहराने लगा।
जैसे-जैसे नृत्य आगे बढ़ता गया, मोहिनी ने अपने हाथों को अपने सिर पर रखा और एक आकर्षक मुद्रा बनाई।
भस्मासुर, जो पूरी तरह से मोहिनी के प्रभाव में था, बिना कुछ सोचे-समझे उनकी नकल करता है और अपना हाथ अपने ही सिर पर रख देता है।
🔹 भस्मासुर का अंत और महादेव की रक्षा
जिस क्षण भस्मासुर ने अपने सिर पर हाथ रखा, उसके ही वरदान के प्रभाव से वह तत्काल भस्म हो गया।
भगवान विष्णु ने तुरंत अपना वास्तविक रूप धारण किया और भगवान शिव के समक्ष प्रकट हुए।
भगवान शिव ने मुस्कुराकर कहा,
“हे हरि! आपकी चतुराई और करुणा ने एक बार फिर ब्रह्मांड को संकट से बचा लिया। मैं आपका अनंत आभार व्यक्त करता हूँ।”
🔹 इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
1️⃣ अहंकार का नाश निश्चित है – भस्मासुर अपनी शक्ति के अहंकार में अंधा हो गया और इसी वजह से उसका विनाश हुआ।
2️⃣ शक्ति का सही प्रयोग आवश्यक है – यदि किसी को असीम शक्ति मिल जाए, लेकिन उसका उपयोग विवेकपूर्ण न हो, तो वह स्वयं के लिए ही घातक बन सकती है।
3️⃣ श्री हरि की लीला अपरंपार है – जब भी भक्त संकट में होते हैं, भगवान विष्णु उनकी रक्षा के लिए किसी न किसी रूप में प्रकट होते हैं।
भस्मासुर की कथा केवल एक पौराणिक कहानी नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के गहरे सत्य भी सिखाती है। जब शक्ति, बुद्धि के बिना मिल जाती है, तो वह स्वयं के ही विनाश का कारण बनती है। भगवान विष्णु ने अपनी चतुराई से न केवल महादेव की रक्षा की, बल्कि यह भी दिखाया कि अहंकार का नाश निश्चित है।
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