जब भी भगवान हनुमान का स्मरण होता है, तब मन में एक ही बात उभरती है — “ब्रह्मचारी हनुमान”. हजारों वर्षों से भक्तों के मन में यही धारणा रही है कि हनुमान जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और विवाह से दूर रहे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ पौराणिक ग्रंथों में एक अत्यंत रोचक कथा मिलती है, जो इस धारणा को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है?
यह कथा न केवल हनुमान जी के आध्यात्मिक जीवन को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस प्रकार उन्होंने गुरु आज्ञा और ज्ञानार्जन के लिए एक विशेष हनुमान जी का विवाह किया — और फिर भी उनका ब्रह्मचर्य व्रत अटूट रहा।

हनुमान जी और सूर्य देव : गुरु-शिष्य संबंध की शुरुआत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी का विवाह एक विशेष कारण से हुआ था। उन्होंने अपनी दिव्य शिक्षाओं के लिए सूर्य देव को गुरु के रूप में स्वीकार किया था। सूर्य देव ने उन्हें नौ विद्याओं का ज्ञान देने का वचन दिया था। इन नौ विद्याओं में से पाँच विद्याएं उन्होंने सहज रूप से सिखा दीं, लेकिन शेष चार विद्याओं के लिए एक विशेष शर्त थी — शिष्य को विवाहित होना आवश्यक था।
गुरु की आज्ञा और एक अप्रत्याशित निर्णय
जब सूर्य देव ने हनुमान जी को बताया कि शेष चार विद्याओं के लिए विवाह आवश्यक है, तब हनुमान जी का विवाह करना उनकी आध्यात्मिक यात्रा का एक हिस्सा बन गया। वे आज्ञाकारी शिष्य थे और उन्होंने गुरु की आज्ञा को सर्वोपरि मानते हुए विवाह के लिए स्वीकृति दे दी।
कौन थीं सुवर्चला? हनुमान जी की आध्यात्मिक पत्नी की रहस्यमयी कथा
अब प्रश्न था — हनुमान जी से विवाह के योग्य कन्या कौन होगी? इस पर सूर्य देव ने स्वयं समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी परम तेजस्वी और तपस्विनी पुत्री सुवर्चला का नाम प्रस्तावित किया।
सुवर्चला कोई साधारण कन्या नहीं थीं। वे तप में सिद्ध थीं, ब्रह्मविद्या में निपुण थीं और उनका लक्ष्य भी दिव्यता की ओर अग्रसर होना था। हनुमान जी का विवाह सुवर्चला से संपन्न हुआ, लेकिन यह विवाह सांसारिक सुख की कामना से नहीं, बल्कि ज्ञान की प्राप्ति और गुरु आज्ञा के पालन हेतु किया गया था।
विवाह के बाद भी ब्रह्मचर्य व्रत क्यों नहीं टूटा?
हनुमान जी का विवाह भले ही पौराणिक ग्रंथों में वर्णित हो, लेकिन इसकी प्रकृति आध्यात्मिक और तात्त्विक थी। विवाह के तुरंत बाद सुवर्चला तप में लीन हो गईं और हनुमान जी ने शेष चार विद्याओं का अध्ययन पूर्ण किया। दोनों ने गृहस्थ जीवन नहीं जिया और न ही एक-दूसरे के सांसारिक साथी बने।
यही कारण है कि हनुमान जी का ब्रह्मचर्य व्रत अटूट रहा। उनका यह विवाह महज एक साधना का हिस्सा था, न कि सांसारिक जीवन की कोई शुरुआत।
सुवर्चला हनुमान मंदिर: तेलंगाना का दिव्य स्थल
तेलंगाना के खम्मम जिले में स्थित एक मंदिर हनुमान जी का विवाह की स्मृति को जीवंत बनाए हुए है। इस मंदिर में भगवान हनुमान जी और देवी सुवर्चला दोनों की प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि इस मंदिर के दर्शन से वैवाहिक जीवन की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और दांपत्य जीवन में सौहार्द आता है।
यह कथा हमें क्या सिखाती है?
हनुमान जी की यह कथा केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं है, बल्कि यह आज के युग में भी अत्यंत प्रेरणादायक है। यह हमें सिखाती है कि ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्थिरता का नाम है। और यह भी कि जब उद्देश्य उच्च और दिव्य हो, तब सांसारिक सीमाएं भी आध्यात्मिक यात्रा में बाधा नहीं बनतीं।
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