आज के समय में धर्म और आस्था को लेकर लोगों की भावनाएं चरम पर हैं। कुछ लोग अपने विश्वास को लेकर इतने संवेदनशील होते हैं कि दूसरों की आलोचना या निंदा सुनकर वे आपा खो बैठते हैं। ऐसे में अक्सर यह सवाल उठता है कि यदि कोई परमेश्वर की निंदा करे, तो हमें क्या करना चाहिए? क्या उसे सजा देनी चाहिए या फिर शांति से इस स्थिति को संभालना चाहिए? आइए, शास्त्रों के अनुसार इस विषय पर विस्तार से जानते हैं।
धर्म और आस्था का महत्व
सनातन धर्म में ईश्वर, देवी-देवताओं, गुरुओं और धर्मग्रंथों का विशेष महत्व है। यह धर्म हर तरह की विचारधारा को सम्मान देता है और उसे स्वीकार करता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति ईश्वर या धर्म की निंदा करता है, तो यह स्थिति बहुत संवेदनशील हो जाती है। ऐसे में हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए, यह जानना बहुत जरूरी है।
शास्त्रों के अनुसार क्या करें?
1. स्थान छोड़ देना
श्रीमद्भागवत गीता और व्यास गीता में कहा गया है कि यदि किसी स्थान पर भगवान की निंदा हो रही हो, तो उस स्थान को तुरंत छोड़ देना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि ऐसी जगह पर रहने से नकारात्मक ऊर्जा और पाप का प्रभाव बढ़ता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, “जो मेरी निंदा करता है, उसे उपदेश मत दो क्योंकि वह न तो तुम्हारी बात समझेगा, न स्वीकार करेगा।” इसलिए, यदि कोई व्यक्ति ईश्वर की निंदा करता है, तो उसे जवाब देने के बजाय वहां से शांतिपूर्वक हट जाना ही बेहतर है।
2. तर्क-वितर्क से बचें
मनुस्मृति और महाभारत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धर्म, ईश्वर या वेदों की निंदा करने वालों से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से मन की शांति भंग होती है और अहंकार बढ़ता है।
महाभारत में यह भी कहा गया है कि धर्म के विषय में अज्ञानी व्यक्ति से बहस करना व्यर्थ है। यदि कोई नास्तिक या द्वेषपूर्ण व्यक्ति भगवान की निंदा कर रहा हो, तो उससे तर्क करने का कोई लाभ नहीं है।
3. शांत और सहिष्णु बने रहें
भगवद गीता और रामायण में कहा गया है कि जिस व्यक्ति का मन स्थिर और शांत है, उसे कोई भी बाहरी शब्द या अपशब्द विचलित नहीं कर सकते। यदि कोई व्यक्ति भगवान की निंदा करता है, तो क्रोधित होकर प्रतिक्रिया देने की बजाय शांत और सहिष्णु बने रहना चाहिए।
भगवान राम ने भी जीवनभर धैर्य, क्षमा और सहिष्णुता का पालन किया। माता सीता के चरित्र के बारे में भला-बुरा सुनने के बावजूद उन्होंने धोबी को सजा नहीं दी। यह उनकी सहिष्णुता और धैर्य का उदाहरण है।
4. धर्म की रक्षा करें
शिवपुराण और स्कंद पुराण में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति भगवान की निंदा करता है और आप उसे रोक सकते हैं, तो आपको अवश्य रोकना चाहिए। यदि आप देखते हैं कि कोई व्यक्ति जानबूझकर आपके इष्ट की निंदा कर रहा है, तो आपको सतर्कतापूर्वक और प्रेमपूर्वक उसे समझाने का प्रयास करना चाहिए।
यदि वह फिर भी निंदा करता है, तो उस स्थान को छोड़ देना ही उचित है। शास्त्रों के अनुसार, ऐसे व्यक्ति का पतन निश्चित होता है, और उसकी निंदा से भगवान का कुछ नहीं बिगड़ता।
क्रोध और हिंसा से बचें
जब लोग भगवान की निंदा सुनकर गुस्से में आकर हिंसक कदम उठाते हैं, तो यह धर्म के मार्ग से भटकना है। शास्त्रों के अनुसार, धर्म का मार्ग संयम और शांति से चलता है, हिंसा और क्रोध से नहीं।
तुलसीदास जी ने कहा है, “समझाए बिना कोई नहीं समझता।” यदि कोई जानबूझकर भगवान की निंदा करता है, तो उससे बहस करने की बजाय शांति से उसे समझाने का प्रयास करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार, यदि कोई परमेश्वर की निंदा करे, तो हमें क्रोधित होने या हिंसा करने की बजाय शांत और सहिष्णु बने रहना चाहिए। स्थान छोड़ देना, तर्क-वितर्क से बचना और धर्म की रक्षा करना ही सही मार्ग है।
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