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गंगा आरती के बाद संगम में पैर क्यों नहीं रखना चाहिए? जानें इसके धार्मिक और आध्यात्मिक कारण

Bhakti Dhaara: Exploring Hindu Dharma's essence Bhakti Dhaara: Exploring Hindu Dharma's essence

गंगा नदी को भारत में “माँ गंगा” के रूप में पूजा जाता है। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि पवित्रता और आस्था का प्रतीक है। प्रयागराज के संगम में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है। यह स्थान विशेष रूप से महाकुम्भ के दौरान अत्यधिक महत्व रखता है। लेकिन एक नियम जिसे सभी श्रद्धालु मानते हैं, वह यह है कि गंगा आरती के तुरंत बाद संगम में पैर नहीं रखना चाहिए। ऐसा क्यों? आइए इसके धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक कारणों को समझें।


संगम की पवित्रता और गंगा आरती का महत्व

गंगा, यमुना और सरस्वती नदियाँ केवल जलधारा नहीं हैं; ये भारतीय संस्कृति में “माता” के रूप में पूजनीय हैं। संगम पर स्नान करने का अर्थ है पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति।

गंगा आरती, जो प्रायः सूर्यास्त के बाद होती है, न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि एक ऐसा समय होता है जब गंगा का जल मंत्रोच्चारण और दीपों की रोशनी से अत्यधिक पवित्र हो जाता है। इस आरती के दौरान, देवी गंगा का आह्वान किया जाता है, और ऐसा माना जाता है कि उस समय स्वयं देवी गंगा जल में वास करती हैं।

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गंगा आरती के बाद संगम में पैर रखना क्यों वर्जित है?

1. देवी गंगा का वास और अनादर का भाव

गंगा आरती के समय देवी गंगा का वास जल में होता है। इस समय संगम में पैर रखना अशुद्धि और अनादर माना जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे मंदिर में पूजा के दौरान जूते पहनकर गर्भगृह में प्रवेश करना।

2. पवित्रता का संरक्षण

आरती के दौरान गंगा जल मंत्रों और देवताओं के आह्वान से अत्यधिक पवित्र हो जाता है। उस समय इसमें पैर रखना पवित्रता को भंग करने के समान है। धार्मिक मान्यता है कि आरती के बाद देवता और दिव्य आत्माएँ स्वयं इस जल में स्नान करते हैं।

3. आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार

गंगा आरती के समय दीपों की रोशनी, घंटों की ध्वनि और मंत्रोच्चारण से जल में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा जल को और अधिक दिव्य और औषधीय बना देती है। उसमें पैर रखने से यह ऊर्जा नष्ट हो सकती है।

4. श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक

गंगा को माँ का दर्जा दिया गया है। आरती के बाद तुरंत जल को छूने या उसमें उतरने से पहले क्षमा याचना और प्रार्थना करना आदर और श्रद्धा का प्रतीक है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण

धार्मिक कारणों के साथ-साथ इस नियम के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। आरती के दौरान नदी के किनारे दीपक जलाए जाते हैं, और आरती समाप्त होने तक जल में घी और फूल जैसे तत्व गिरते हैं। इस समय नदी में प्रवेश करने से इन तत्वों को हटाने या गंदा करने का डर रहता है। साथ ही, जब तक यह सामग्री पूरी तरह से प्रवाहित नहीं हो जाती, तब तक जल में प्रवेश करना उचित नहीं माना जाता।


क्या गंगा आरती के बाद संगम में स्नान पूरी तरह वर्जित है?

गंगा आरती के तुरंत बाद संगम में पैर रखना वर्जित है, लेकिन कुछ समय के बाद, जब आरती समाप्त हो जाती है और जल शांत हो जाता है, तब स्नान करना या नदी में प्रवेश करना मान्य है। इससे पहले श्रद्धालु प्रायः हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं और क्षमा याचना करते हैं।


श्रद्धालु क्या करें?

  1. आरती के समय शांत रहें और गंगा की आराधना करें।
  2. आरती समाप्त होने के तुरंत बाद नदी में प्रवेश न करें।
  3. अगर स्नान करना है तो कुछ समय इंतजार करें और माँ गंगा से अनुमति मांगें।
  4. गंगा के पवित्र जल का अपमान न करें।

गंगा आरती का आध्यात्मिक संदेश

गंगा आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है; यह श्रद्धा, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि अपने जीवन में भी हमें पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना चाहिए। जैसे आरती के दौरान गंगा का जल पवित्र और दिव्य होता है, वैसे ही हमारे कर्म भी पवित्र और निस्वार्थ होने चाहिए।


गंगा आरती के बाद संगम में पैर रखने का नियम केवल आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह माँ गंगा के प्रति हमारी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि प्रकृति, देवत्व और हमारी परंपराओं का आदर करना कितना महत्वपूर्ण है।

इस तरह की और रोचक जानकारियों के लिए भक्ति धारा को जरूर फॉलो करें।

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