रामायण के कई किरदारों में त्रिजटा एक अनूठी और प्रेरणादायक भूमिका निभाने वाली राक्षसी थीं। उनकी भक्ति, सत्यनिष्ठा, और धर्म के प्रति लगाव ने उन्हें एक विशिष्ट पहचान दी। त्रिजटा, रावण की सेना में एक प्रमुख राक्षसी होते हुए भी माता सीता की रक्षा और सेवा में समर्पित रहीं। युद्ध के बाद उनका जीवन कैसा था? चलिए, इस रहस्यमयी किरदार की कहानी को विस्तार से जानते हैं।
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Toggleत्रिजटा: राक्षसी होकर भी धर्मनिष्ठा का प्रतीक
त्रिजटा का किरदार वाल्मीकि रामायण और विभिन्न क्षेत्रीय रामायणों में गहराई से उल्लेखित है। वह रावण की सेना में एक प्रभावशाली राक्षसी थीं, जिन्हें माता सीता की देखभाल और सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था। कई कथाओं में त्रिजटा को विभीषण की बेटी बताया गया है।
त्रिजटा के पास एक अद्भुत क्षमता थी—भविष्यवाणी करने की। उन्होंने रावण और उसकी सेना के विनाश और भगवान राम की विजय की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी।
माता सीता के प्रति त्रिजटा की भक्ति
जब रावण ने सीता माता का हरण कर अशोक वाटिका में रखा, तो त्रिजटा को उनकी देखभाल के लिए नियुक्त किया गया। उन्होंने न केवल अन्य राक्षसियों को सीता को कष्ट देने से रोका, बल्कि हर संभव प्रयास किया कि सीता माता को रावण के क्रोध से बचाया जा सके।
त्रिजटा ने माता सीता को विश्वास दिलाया कि भगवान राम उन्हें मुक्त करेंगे। उन्होंने अपने एक सपने का वर्णन किया जिसमें उन्होंने राम की विजय और रावण के पतन को स्पष्ट रूप से देखा।
रावण के पतन के बाद त्रिजटा का जीवन
लंका युद्ध के बाद, जब रावण का अंत हो गया और विभीषण ने लंका की गद्दी संभाली, त्रिजटा को विभीषण के दरबार में एक सम्मानजनक स्थान दिया गया। उनके धर्मनिष्ठा और राम-भक्ति के कारण उन्हें विभीषण का समर्थन प्राप्त था।
कई मान्यताओं के अनुसार, त्रिजटा ने बाद में तपस्या का मार्ग अपनाया और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाया। उनकी भक्ति और माता सीता के प्रति अटूट निष्ठा के लिए उन्हें आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ।
त्रिजटा की गाथा से सीख
त्रिजटा का जीवन हमें सिखाता है कि सत्य, भक्ति, और धर्म के मार्ग पर चलने से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। एक राक्षसी होते हुए भी उन्होंने अपने धर्म और कर्तव्य का पालन किया।
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