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मनुष्य का भाग्य: कर्म, आशीर्वाद और प्रारब्ध का प्रभाव

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Bhakti Dhaara: Exploring Hindu Dharma's essence Bhakti Dhaara: Exploring Hindu Dharma's essence

एक बार महर्षि नारद वैकुंठ की यात्रा पर जा रहे थे। मार्ग में उनकी भेंट एक दुखी महिला से हुई। वह बोली, “मुनिवर, आप भगवान नारायण से मिलने जा रहे हैं। कृपया उनसे पूछें कि मेरे जीवन में संतान सुख कब आएगा? मेरे घर में कोई औलाद नहीं है।”

नारदजी ने सहमति दी और “नारायण-नारायण” कहते हुए अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गए। वैकुंठ पहुंचने पर, उन्होंने भगवान नारायण से महिला का प्रश्न पूछा। नारायणजी ने उत्तर दिया, “उसके भाग्य में संतान सुख नहीं है।”

लौटते समय नारदजी ने महिला को यह संदेश दिया। इसे सुनकर वह फूट-फूटकर रो पड़ी। नारदजी वहां से चले गए।

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कुछ समय बाद, गांव में एक योगी का आगमन हुआ। वह महिला के घर के पास खड़ा होकर बोला, “जो मुझे एक रोटी देगा, उसे मैं नेक औलाद का वरदान दूंगा।” महिला ने तुरंत रोटी बनाकर योगी को दी। योगी के आशीर्वाद से उसके घर एक पुत्र का जन्म हुआ।

संतान के जन्म पर महिला ने गरीबों में भोजन बांटा और खुशियां मनाईं। कुछ वर्षों बाद, जब नारदजी फिर से उस गांव से गुजरे, तो महिला ने उन्हें बुलाया और कहा, “आप तो कहते थे कि मेरे भाग्य में औलाद नहीं है। देखिए, यह मेरा बेटा है।”

उसने योगी की कहानी भी सुनाई। यह सुनकर नारदजी चकित रह गए। उत्तर पाने के लिए वे तुरंत वैकुंठ पहुंचे और भगवान नारायण से प्रश्न किया, “आपने कहा था कि उस महिला के भाग्य में संतान नहीं है। तो फिर वह योगी इसे कैसे बदल सका? क्या उसमें आपसे अधिक शक्ति है?”

भगवान नारायण मुस्कराए और बोले, “नारद, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। पहले मेरे लिए औषधि का प्रबंध करो।” नारदजी ने सहमति दी। नारायणजी ने उनसे एक कटोरी रक्त लाने को कहा।

नारदजी ने पूरी पृथ्वी पर रक्त खोजा, लेकिन कहीं नहीं मिला। निराश होकर वह एक जंगल पहुंचे, जहां उनकी भेंट उसी योगी से हुई। योगी ने नारदजी की समस्या सुनी और तुरंत अपने शरीर से रक्त देकर कटोरी भर दी।

नारदजी वह रक्त लेकर भगवान के पास पहुंचे। नारायणजी बोले, “यह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। जो योगी मेरे लिए अपने शरीर से रक्त दे सकता है, उसकी प्रार्थना से किसी को पुत्र क्यों नहीं मिल सकता?

नारद, तुम भी उस महिला के लिए प्रार्थना कर सकते थे, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। मनुष्य का भाग्य केवल प्रारब्ध से नहीं बनता, बल्कि उसके कर्म और आशीर्वाद भी उसे बदल सकते हैं।”

सीख:

मनुष्य का भाग्य उसके कर्मों, आशीर्वाद और प्रारब्ध का मेल है। सच्चे दिल से की गई प्रार्थना और दूसरों की भलाई के लिए किए गए प्रयास भाग्य को बदल सकते हैं।

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